...

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रंगो भरा शहर

कुछ थमता काहा है,
हर पल बदल ही जाता हैं!
एक पल में कुछ और अगले में कुछ,
मैं सोचता हु जो वो कहा कोई दुसरा सोचता है!
जरूरी भी नहीं, सबका एक सा होना !
इस रंगो भरे शहर में, एक रंग का मै !(कटाश )
मै निराशाजनक अगर लिखता हूं तो,
निराशा का पात्र तुम ही हो!
अगर मेरे चुलेह में धुआ आता हैं ,
तो उसका पात्र कच्ची लकड़ियां है मै नही!
मै रोज अच्छाई लिए फिरता हूं, और रोज तुम उस अच्छाई को कष्टों मै तब्दील करते हो!
अच्छाई को कमजोरी, समझना आदत है तुम्हारी !


© unicorn