...

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अशर्त प्रेम
पाप तो मैंने भी बहुत किए
पर तूने कभी मुझे छोड़ा नहीं
अपने से कभी दूर किया नही
अपने चरण का दस बनाए रखा
खुद से कभी वंचित नहीं किया
प्रभु तुने मुझे हमेशा अपने पास  रखना
मेरा मार्ग दर्शन किया

प्रभु मेरे ह्रदय मे वास करना
मानती हूं कलयुग की प्राणी हूं
पर कभी किसी का बुरा करना तुझ से मैंने  सीखा नही
मेरी आत्मा मेरा मन सब तो तेरा है
तुझे कितना भी धन्यवाद करू कम है
आज में जो कुछ भी ही तेरे चलते हूं

मेरी शांति ,
मेरा सुकून बना है तू
मेरे आसू तो तूने पोंछे ही है किसी न किसी रूप में
तेरी ऋणी हूं में
और में खुश हु तेरी ऋणी बन के
कम से कम इसी बहाने तेरे चरणों के पास तो हूं
वंचित होना भी चाहूं तो तू रोक लेता है मुझे
इतना निस्वार्थ प्रेम कैसे है तेरा?
मुझ जैसे पापी को भी तूने अपने प्रेम की वर्षा में भींगा दिया

और अपनी भक्ति का आशीर्वाद दिया
जो भी मांगा तूने वो सब मुझे दिया
कभी भी मुझे अकेला नहीं छोड़ा
कैसे तुझे छोड़ दू में
तेरे बिना सास अब चलेगी नही
राम बोलूं या हनुमान
शिव बोलूं या विष्णु
सब तो तू ही है
तेरी में और मेरा तो बस तू ही है
     
    

© नैनिका