...

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ज़रूरी तो नहीं
मैं चाहती हूँ जिसे जान से ज़्यादा
वो भी बस चाहे मुझे
ज़रूरी तो नहीं
वो जिसका नाम हर पल लबों पे मिरे
वो भी कभी मुझे बुलाए
ज़रूरी तो नहीं
वो जिसके लिए रोज़ सजता-सँवरता है आईना
वो आ कर मेरी दुनिया सजा जाए
ज़रूरी तो नहीं
वो जिसके नाम से चल रही हैं ये धड़कन
उसे भी‌ मेरे नाम पे साँस आए
ज़रूरी तो नहीं
हर पल उसकी इबादत की मैंने रब के होते हुए
वो भी बस मुझे ख़ुदा बनाए
ज़रूरी तो नहीं
जिसका रस्ता तकते बैठी हूँ दहलीज़ पे अरसे से
वो कभी किसी आहट पे दरवाज़े पर आए
ज़रूरी तो नहीं
रात‌ कट जाती है हर रोज़ ख़यालों में जिसके
मिरा कोई ख़्वाब उसे भी जगा जाए
ज़रूरी तो नहीं
फिर अंदाज़ा हुआ देर तक उसकी तस्वीर तकते हुए
कि जो हाथों में है वो बाँहों में भी आ जाए
ज़रूरी तो नहीं
कि ज़िन्दगी का तसव्वुर तक नहीं जिसके बिना
वो भी मर जाए मेरे बग़ैर
ज़रूरी तो नहीं
चलो यार कि अब आग लगा दो मेरी लाश को
वो सब काम‌ छोड़ मिरी मैय्यत पे आए
ज़रूरी तो नहीं