...

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Rishto Ka Vyapaar
यह कैसा संसार है
जहाँ रिश्तो का व्यपार है
जहाँ स्वार्थ और अभिमान प्यारा है
पर भावनाएँ तार तार है

उम्मिदो के जाले है बस
और निश्छल हृदय बेकार है
मतलबो से मतलब है
सौहार्दपूर्णता दरकिनार है

लक्ष्मी की है अति लालसा
सरस्वती उधार है
अज्ञानी अधर्मी अहंकारी के
जीवन भी तो बस चार है

सूई की नोक मात्र भी नही कोई रब के
फिर क्यो यह दंभ सवार है
मिलना इसी मिट्टी में है
फिर भी ना जाने कैसा व्यवहार है

उम्मीदे आशाऐ तो काफी है दूसरों से पाने की
पर कुछ देना नागवार है
खुद के सद्गुण का दिखलावा
और दूसरों कि अस्वकृति ही आधार है

आत्मा जहाँ खोखली है
नश्वर शरीर से प्यार है
रिश्तो का मान पैसा और मतलब
शांतिप्रिय जीवन दुश्वार है

दूसरों की बस दिखे खामियाँ
खुद कि लगे बहार है
स्वअवलोकन लगे कठिन जहाँ
चेहरो के अनेक प्रकार है

मनोकामना पूर्ति जहाँ
ईश्वर कि आराधना का आधार है
यह कैसा संसार है
यहाँ रिश्तो का व्यपार है ।।

© thestubbornbeast_10