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यूं ही नहीं मिल जाती मंजिल
यूं ही नहीं मिल जाती मंजिल
मेहनत की आग में जलना पड़ता है
पाना हो अगर साहिल
तो समंदर की लहरों से लड़ना पड़ता है
कितना भी कठिन क्यूं न हो रास्ता
निरंतर आगे बढ़ना पड़ता है
यूं ही नहीं मिल जाती मंजिल
सब्र की आंधी से जूझना पड़ता है
मोह माया की इस दुनिया से दूर
खुद को ऊपर रखना पड़ता है
यादों के..वादों के जंजाल से
दुखों से..नकाब पहने इंसान से
खुद ही बचना पड़ता है
दिल दिमाग के मेल को
जीवन के उतार-चढ़ाव और
किस्मत के खेल को
भावुकता नहीं धैर्य से
मन को सख्त रखना पड़ता है
यकीनन मिल जाएगी मंजिल
बस खुद पर विश्वास करना पड़ता है
© Diksha Rathi🌻