...

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हाय ये बेरोजगारी..
हंस कहूं या विलख कहूं,
यूं कहो तो कुछ अलग कहूं।
बीच भंवर में फंसी है नईया,
कहो तो मैं न कहूं।।
कल हजार थे,
आज कई हजार हैं।
घूम रहे हो सब निठल्ले,
क्योंकि बेरोजगारी चरमपार है।।
हर हाथों में तेज धार है,
शायद इस दौर में सब बेकार है।
हर महकमा चीख रहा,
ख्वाबों को खून से सींच रहा।
खाने के भी हो गए लाले,
क्योंकि मंहगाई भी अपरंपार है।।
मुंह खुले तो भंज रही हैं लाठियां,
हक में हमारे मिल रही हैं बस गालियां।
कल को बजते थे ढोल नगाड़े,
आज बज रही हैं थालियां।।
हर कुर्सी वाला कर रहा अपना वाह वाही है,
जमीं पे पटक हमें कर रहा तानाशाही है।।
आज का मसला छोटा नहीं भारी है,
हे!भारत के वीर युवा उठो,
ये तंत्र उखाड़ फेंकने की अब तुम्हारी बारी है।।
written by ( संतोष वर्मा)
आजमगढ़ वाले ..खुद की जुबानी