हाय ये बेरोजगारी..
हंस कहूं या विलख कहूं,
यूं कहो तो कुछ अलग कहूं।
बीच भंवर में फंसी है नईया,
कहो तो मैं न कहूं।।
कल हजार थे,
आज कई हजार हैं।
घूम रहे हो सब निठल्ले,
क्योंकि बेरोजगारी चरमपार है।।
हर हाथों में तेज धार है,
शायद इस दौर में सब बेकार है।
हर महकमा चीख रहा,
ख्वाबों को खून से सींच...
यूं कहो तो कुछ अलग कहूं।
बीच भंवर में फंसी है नईया,
कहो तो मैं न कहूं।।
कल हजार थे,
आज कई हजार हैं।
घूम रहे हो सब निठल्ले,
क्योंकि बेरोजगारी चरमपार है।।
हर हाथों में तेज धार है,
शायद इस दौर में सब बेकार है।
हर महकमा चीख रहा,
ख्वाबों को खून से सींच...