...

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ख़ुद पर यकीं
212 212 212 212
कुछ हमारी तरफ़ भी नज़र कीजिए
हो सके कातिलों को ख़बर कीजिए

जब खफ़ा ज़िन्दगी हम से होने लगे
तू बता किस तरह फिर गुज़र कीजिए

ये ज़माना कभी साथ देता नहीं
क्यूं गमों की इसे फिर ख़बर कीजिए

बेवफ़ा ज़िन्दगी अब तो होने लगी
चल कहीं और चल कर बसर कीजिए

है ज़मीं सख़्त तो आसमां दूर है
तू बता फिर कहां पे बसर कीजिए

कर भरोसा तू ख़ुद पे यकीं कर ज़रा
हौसलों से जहां ये ज़फ़र कीजिए।

© अमरीश अग्रवाल "मासूम"