क्रांति की वार्ता हो तो फिर शांति का आगाज़ कैसा...
निज वर्चस्व, निज स्वार्थ है,
न संवाद है, न सुकून सा,
क्रांति की वार्ता हो तो फिर शांति का आगाज़ कैसा।।
दर- दर हुए, जर्जर हुए,
हुए बेघर वो कौन इंसान,
चिंगारी को हवा मिली,
धुएं से भर उठा आसमान।
उड़ान ,अरमान, अपने और सपने
सब कुछ है लहू से सने,
हलक भी है अब प्यासा सा,
क्रांति की वार्ता हो तो फिर शांति का आगाज़ कैसा।।
इंतकाम की ज्वाला में आसियाने तबाह होते देखे है,
वे कौन है ? जो संवाद...
न संवाद है, न सुकून सा,
क्रांति की वार्ता हो तो फिर शांति का आगाज़ कैसा।।
दर- दर हुए, जर्जर हुए,
हुए बेघर वो कौन इंसान,
चिंगारी को हवा मिली,
धुएं से भर उठा आसमान।
उड़ान ,अरमान, अपने और सपने
सब कुछ है लहू से सने,
हलक भी है अब प्यासा सा,
क्रांति की वार्ता हो तो फिर शांति का आगाज़ कैसा।।
इंतकाम की ज्वाला में आसियाने तबाह होते देखे है,
वे कौन है ? जो संवाद...