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छत्रपती शिवाजी महाराज कविता
मुगलों की सल्तनत पे उसने वार किया था ऐसा कुछ,
दंग रह गई आदिलशाही-निजामशाही है ये सच।
शिवनेरी पे जन्म हुआ रख दिया शिवाजी नाम है,
शिवाई माता के आशीर्वच का ये लाया पैगाम है।
युद्धनीति को सीखते दादोजी से धर्म जिजाऊ से ,
राम-कृष्ण की तरह तुम भी धर्म बचाना कहा उस से।
शिवबा ने कर ली प्रतिज्ञा सामने है रायरेश्वर
कीलों का है महत्त्व अद्भुत, तोरणा से शुरुआत कर।
अफजलखाँ ने बीड़ा उठाया विजापूर दरबार में,
बाघ-नखों से चीर दिया है उदर को उस संहार में।
जीवा महाला ने मारा सय्यद बंडा को वार से,
अफजल की सेना भागे फाजल को लेकर हार से।
सिद्दी जौहर ने है घेरा पन्हाला को चारों ओर,
बाजी ने बाजी लगाई प्राण के उनकी टूटी डोर।
मुरारबाजी शूरवीर थे लड़े पुरंदर रक्षण पे,
स्वामिभक्त थे उनके ऐसे उदार अपने जीवन पे।
बंदी बन गए आगरा में थे हुई अचानक बीमारी,
संतों को उपहार मिठाई भेष बदल के निकली सवारी।
लाल महल पे कब्ज़ा करके शाइस्ता है रहने लगा,
काटी उसकी उँगलियाँ, जान न गई, खून बहने लगा।
भारत में सबसे पहले है नौसेना का किया निर्माण,
कीलों और मनुष्यों का किया संगठन, नारी-सम्मान।
युद्ध प्रशासन में हैं आगे, जनता को देखें हैं सुखी,
नेतोजी को लिया धर्म में, किसी को कभी किया न दुखी।
गुरुवर उनके थे संतों में समर्थ और तुकाराम,
अष्टप्रधान मंडल की स्थापना, शुरू हुआ राजा का काम।
रामराज्य के बाद है ऐसा राज्य हुआ वो पहली बार,
स्वराज्य की उसने की स्थापना और शत्रु का किया संहार।

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