...

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"मेरी मजबूरियां और उनकी आशाएं"
पहले ही कहा था कि मुझे न इतना प्यार दो,
अब क्यूं कह रहे हो कि वापस मेरा उधार दो।
समझ सकता हूं कि आपकी चाहत क्या है?
मैं मजबूर हूं, तुम्हीं बताओ अब राहत क्या है?

पनपते प्यार को संभाल रखा है मैंने।
तुम्हारे खूबसूरत दिल को खंगाल रखा है मैंने।
हालात तुम भी समझ सकते हो कि अब दौर क्या है?
बना दिया है मुमताज़ तुमको, खुद को कंगाल रखा है मैंने।

जुदाई जैसे हालात न पनपने देना तुम,
जमाना पूछे ऐसे सवालात बनने न देना तुम।
मैंने एक उम्र बिताई है पाने को चाहत तुम्हारी,
जैसा हूं सामने हूं,बेवफा जैसे भरम रहने न देना तुम।

तजुर्बा है कि हर हाल में वक्त बदल ही जाएगा,
जो आज गिरा है वो कल संभल ही जाएगा।
मुझे यकीन है कि ये सब तुम अच्छे से समझते हो,
जब भी उदास होता हूं तो बड़े लाढ़ से मुझ पर बरसते हो।

चलो अब बंद भी करो ये फिजूल की बातें,
भूल जाओ सब और याद करो प्यार भरी मुलाकातें।
कुछ पल सुकून तो जरूर मिलेगा दिल को मान लो,
आओ पास फिर से आगोश में गुजारते हैं सब रोज रातें।