...

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यादें
सिहर जाता हूं अक्सर और सोच के डर लगता हूं।
तुम्हारे बिन सूना-सूना ये शहर लगता है।

कभी फुर्सत में आओ और मेरे पास बैठो।
अकेले बैठनें में अब मुझे डर लगता है ।

तेरे जाने के बाद घर की मरम्मत नहीं हुई।
अब तेरा ताज भी बीमार का घर लगता है।

अजीब मंजर पे गया है मुझे छोड़ के जाने वाला।
जिंदगी पूरी है और मुझे जीने में डर लगता है।
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