...

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अ कश दिल तू सम्भला होता
अ काश दिल तू थोड़ा संभला होता
कुछ मैं भी जरूर संभला होता
गर्दिशों की जद में न दला होता
यू उजाड़ कर महल तेरे ख्वाबों का
कोई थम-थम कर अश्कों में न चला होता
और इससे भी बुरा क्या भला होता
अ काश दिल तू थोड़ा संभला होता
कुछ मैं भी जरूर संभला होता
मिशाले देता समझाता खूब तुझे हशर पर
क्या गुज़रती है चाहने वाले बशर पर
पर नशा चढ़ता ही जाता धुनकी का असर कर
बस खुदी में आ गया तू चाहने लगा उसे टूटकर
अ काश दिल तू थोड़ा संभला होता
कुछ मैं भी जरूर संभला होता

© pawan kumar saini