...

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आजादी पर्व
भूल कर अपनी सभ्यता तुम
आज आजादी पर्व मनाते हो
ढोंग समझ रिवाजों को तुम
खुद को आधुनिक बतलाते हो
करते हो अपमानित जिस स्त्री को
फिर किस हक से उसकी पूजा करते हो
बात जब हवस मिटाने की हो तो
बच्चियों से भूख मिटाते हो
मार कर खुद की इंसानियत
आज आजादी पर्व मनाते हो
बना वेश भूषा विदेशियों की
तुम खुद को स्वदेशी बताते हो
भूल कर स्त्री की मर्यादा तुम
छोटे कपड़ों में आधुनिकता दर्शाते हो
जननी हो तुम इस धरा की
तुमसे ही है अस्तिव हम सबका
आजादी के नाम पर तुम ये
कैसी आधुनिकता फैलाते हो
भूल कर तुम अपनी संस्कृति
कैसे ये आजादी बतलाते हो
काजल सिंह
© kajal