...

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बात विचारों की

लिखी गई एक कहानी नाम ए बन्धन की
सोच रखी गई खुदकी
और लफ्ज़ लिखे गए रीति रिवाजों की..!

वो घर , वो आंगन, वो देहलीज़ और बचपन
ना लगाए बेड़ियाँ कभी ,
गूंजते थे रिश्तों में धुन , जो थी मेरी पायल की...!

बाबुल का घर , ना है कोई दौर
जो छुट जाए दिल से , मुझे डर नहीं किसी रीत की..!
है प्यारा हर आंगन, जहाँ मन से मिले मन
रंग बिरंगी फूल और खुशबु से
शोभा बढ़ती है हर बाग और बगियन की..!

बंधी साँसों की डोर, मन जोड़ी प्रीतम की ओर
भाव आदर का रिश्तों मे परोसी...
बढ़ा प्यार सबके मन में, प्रीत भी जगी प्रीतम में
बसाने लगी संसार आशीर्वाद ले कर अपनों की..!

प्रियतम जब सखा सजे, प्यार के आभूषण बजे
मिला मान सम्मान सबको बराबर की..!

ना कोई रिश्ता रूठे, ना मेरा संस्कार छूटे
पिता का अभिमान और पति का सम्मान बन कर
जीवन लिखी गई एक ' दुहिता ' की..!

जयश्री ✍️