घड़ी की सुई
उस पुतले की तरह बन गए हैं,
जिसमे जान नहीं होती और ना ही आवाज़ ,
दिल का कयां कसूर,
जो वक़्त पे मलम की पट्टी बांध रहा हैं ,
पहचान की मूरत में,
अपने हीं चेहरे को नकाब...
जिसमे जान नहीं होती और ना ही आवाज़ ,
दिल का कयां कसूर,
जो वक़्त पे मलम की पट्टी बांध रहा हैं ,
पहचान की मूरत में,
अपने हीं चेहरे को नकाब...