...

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"वन्दना"
सुनो,
तुमसे मुझे है कुछ कहना...

तुम, हां तुम ही..
मेरी, बिल्कुल मेरे जैसी...

गलतियां, ढ़ेर सारी...
नयी, अनगिनत करो, करो तो सही...

लड़खड़ाना ज़रूर, बार-बार...
बस एक बार, हिम्मत करके, चलो तो सही....

उजले हैं, चांद-तारे तो क्या...
धुंधला सा आसमां, उनींदी आंखों से, देखो तो सही...

अधूरी सी हो, तो बेहतर है...
पाने को, उम्मीदों से भरा जहां, है तो सही....

तुमसे पूर्ण होंगें, सब यहां....
देखो, सुनो, समझो, मेरी मानो तो सही 'वन्दना'।

© प्रज्ञा वाणी