...

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"अहसास"
न कम ना थोड़ा ज्यादा समझना ....

जैसा हूँ वस वैसा ही समझना !


लफ्जो में बयां न हो तो न सही

पर अहसासो को समझना !


देह को न सही
पर

रुह को अपना समझना !

रिश्ता बने या न बने
पर

बेनाम सी अधूरी कहानी में
रहना !

न कम ना थोड़ा ज्यादा समझना ....

© रविन्द्र "समय"