7 views
#प्राकृतिकसुषमा #कवि
सुबह की तरोताजा
प्रसन्न हवा उनमुक्त होकर बह रही ।
ताजा ताजा खिले पुष्प भी
इतरा इतरा कर गंध घोलते हवामें ।
नयी नयी कोपलें पौधों पर
मंद मंद मुस्कुराकर हँस रही ।
मुरझाये हूए पौधे भी
त्यागकर आलस्य तनकर है खडें ।
रातभर की बंध खिड़कियाँ
मुर्छा त्यागकर सजीव हो उठी ।
थमी थमी सी चहल पहल अब
शायद ! वाचालता में बदल रही ।
भोर की लालिमा कुछ तिव्र
होती हूई स्वर्णिम किरणोंमें धुल मिल रही ।
यायावर पंछी छोड़ घोंसले
चुगने को निकल पडे पेट संभाल ।
रातभर दीदार को तरसती आँखे
किसी की खिडकियों पर बिछ गई ।
जिम्मेदारीयां जिनको सोने नहीं देती-
- बेचारे मारे मारे ओफिस को निकल पडे ।
रोजगारी की खोज में बेरोजगार भी
कौओं की तरह अखबार फिंच रहे ।
बस ! मस्तमौला फकीरनूमा कवि भूलाकर
अभावों को प्राकृतिक सुषमा का लुफ्त उठा रहा !!
© Bharat Tadvi
प्रसन्न हवा उनमुक्त होकर बह रही ।
ताजा ताजा खिले पुष्प भी
इतरा इतरा कर गंध घोलते हवामें ।
नयी नयी कोपलें पौधों पर
मंद मंद मुस्कुराकर हँस रही ।
मुरझाये हूए पौधे भी
त्यागकर आलस्य तनकर है खडें ।
रातभर की बंध खिड़कियाँ
मुर्छा त्यागकर सजीव हो उठी ।
थमी थमी सी चहल पहल अब
शायद ! वाचालता में बदल रही ।
भोर की लालिमा कुछ तिव्र
होती हूई स्वर्णिम किरणोंमें धुल मिल रही ।
यायावर पंछी छोड़ घोंसले
चुगने को निकल पडे पेट संभाल ।
रातभर दीदार को तरसती आँखे
किसी की खिडकियों पर बिछ गई ।
जिम्मेदारीयां जिनको सोने नहीं देती-
- बेचारे मारे मारे ओफिस को निकल पडे ।
रोजगारी की खोज में बेरोजगार भी
कौओं की तरह अखबार फिंच रहे ।
बस ! मस्तमौला फकीरनूमा कवि भूलाकर
अभावों को प्राकृतिक सुषमा का लुफ्त उठा रहा !!
© Bharat Tadvi
Related Stories
9 Likes
0
Comments
9 Likes
0
Comments