बिन कहे ।
बचपन की उस मुस्कान को
जो जिंदगी भर कायम रखने की
कोशिश में
सारी उम्र अपने आंसू छिपता है,
ऑफिस से थका- हारा आकर
तुम्हें बहार घुमाने ले जाता है,
लाखो शौक़ थें जिसके कभी,
पर..
तुम्हारी जिद के आगे झुक जाता है,
और
दुनिया भर की तकलीफ़े अपनी झोली में डाल कर.....
जो जिंदगी भर कायम रखने की
कोशिश में
सारी उम्र अपने आंसू छिपता है,
ऑफिस से थका- हारा आकर
तुम्हें बहार घुमाने ले जाता है,
लाखो शौक़ थें जिसके कभी,
पर..
तुम्हारी जिद के आगे झुक जाता है,
और
दुनिया भर की तकलीफ़े अपनी झोली में डाल कर.....