...

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हारा हुआ शक्श
कभी टूटा हुआ
तो कभी बिखरा हुआ था
पर तेरी नज़र में तो मैं
शख्स बिगड़ा हुआ था...
खुशियां बटोरने में जरा कमजोर था मैं
पर गमों की शफ में शख्स
अकेला खड़ा था मैं....
उड़ता तो था मैं भी ख्यालों के आसमानों में
ये बारिश में भिगोता था खुद के पतंगी अरमानों में...
जो आये जमीं पर तो मुझसे रिश्ते लिपट गए
जो लाया था सुकुन आसमानों से सब बांट दिए थे मैंने, बस अपनों के खातिर ही पंछी और पिंजरा हुआं था मैं...
जाने फिर भी लोग कहते हैं कि लड़का बिगड़ा हुआ था मैं...!!


© 𐌼я. ∂ιϰιт