द्वारकाधीश
स्वर्ग में विचरण करते हुए
अचानक एक दुसरे के सामने आ गए
विचलित से कृष्ण,
प्रसन्नचित सी राधा…
कृष्ण सकपकाए,
राधा मुस्काई…
इससे पहले
कृष्ण कुछ कहते
राधा बोल उठी…
कैसे हो द्वारकाधीश?
जो राधा
उन्हें कान्हा कान्हा कह के बुलाती थी
उसके मुख से
द्वारकाधीश का संबोधन
कृष्ण को भीतर तक घायल कर गया
फिर भी
किसी तरह
अपने आप को संभाल लिया…
और बोले राधा से,
मै तो तुम्हारे लिए आज भी कान्हा हूँ
तुम तो द्वारकाधीश मत कहो!
आओ बैठते है…
कुछ मै अपनी कहता हूँ
कुछ तुम अपनी कहो…
सच कहूँ राधा
जब जब भी तुम्हारी याद आती थी
इन आँखों से आँसुओं की बुँदे निकल आती थी…
बोली राधा,
मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ
ना तुम्हारी याद आई
ना कोई आंसू बहा…
क्यूंकि हम तुम्हे कभी भूले ही कहाँ थे
जो तुम याद आते…
इन आँखों में
सदा तुम रहते थे
कहीं आँसुओं के साथ निकल ना जाओ
इसलिए रोते भी नहीं थे…
प्रेम के
अलग होने पर
तुमने क्या खोया
इसका इक आइना दिखाऊं आपको?
कुछ कडवे सच,
प्रश्न सुन पाओ तो सुनाऊ?
कभी सोचा
इस तरक्की में
तुम कितने पिछड़ गए?
यमुना के
मीठे पानी से
जिंदगी शुरू...
अचानक एक दुसरे के सामने आ गए
विचलित से कृष्ण,
प्रसन्नचित सी राधा…
कृष्ण सकपकाए,
राधा मुस्काई…
इससे पहले
कृष्ण कुछ कहते
राधा बोल उठी…
कैसे हो द्वारकाधीश?
जो राधा
उन्हें कान्हा कान्हा कह के बुलाती थी
उसके मुख से
द्वारकाधीश का संबोधन
कृष्ण को भीतर तक घायल कर गया
फिर भी
किसी तरह
अपने आप को संभाल लिया…
और बोले राधा से,
मै तो तुम्हारे लिए आज भी कान्हा हूँ
तुम तो द्वारकाधीश मत कहो!
आओ बैठते है…
कुछ मै अपनी कहता हूँ
कुछ तुम अपनी कहो…
सच कहूँ राधा
जब जब भी तुम्हारी याद आती थी
इन आँखों से आँसुओं की बुँदे निकल आती थी…
बोली राधा,
मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ
ना तुम्हारी याद आई
ना कोई आंसू बहा…
क्यूंकि हम तुम्हे कभी भूले ही कहाँ थे
जो तुम याद आते…
इन आँखों में
सदा तुम रहते थे
कहीं आँसुओं के साथ निकल ना जाओ
इसलिए रोते भी नहीं थे…
प्रेम के
अलग होने पर
तुमने क्या खोया
इसका इक आइना दिखाऊं आपको?
कुछ कडवे सच,
प्रश्न सुन पाओ तो सुनाऊ?
कभी सोचा
इस तरक्की में
तुम कितने पिछड़ गए?
यमुना के
मीठे पानी से
जिंदगी शुरू...