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अनकही परछाइयां: छायाओं की भाषा
#छायाओंकीभाषा

अनकहे शब्दों की दुनिया
छायाओं की भाषा,
है द्वंद-प्रतिद्वंद्व की परिभाषा।

सिसकते मुस्कान,
कांपती ज़ुबान।
छुपते-छुपाते
हंसते चोट के निशान।

सुलगते सवाल
बुझते ज़वाब।
काली रौशनी,
उजली छाया,
अट्टहास करता मोह
और आक्रंदन करती माया।

अभिलाषा और निराशा,
कभी प्रेम की भावना
कभी विरह की वेदना।
भावशून्य हुए विचार
निष्प्रभ हुई संवेदना।

अंधेरी उम्मीदें
चमकती असफलताएं।
किसको जताएं,
किससे निभाएं।
खुद को ही खोकर
आखिर क्या पाएं?

घिसटते लक्ष्य, बहती भीड़,
यायावर होते...