कोख।।
कहने को तो दो अक्षर का शब्द है,
पर पूरा उसमें ब्रह्मांड समा जाता है।
देखते ही देखते बच्चा इसमें बड़ा हो जाता है,
और जैसे ही वह बाहर आता है,
देख वह संसार खूब इतराता है।
और फिर एक दिन उसे ही भूल जाता है,
जिसने उसे दुनिया से छुपाया होता है,
न जाने क्यों उसी पर गुराता है और फिर,
इसी कोख को दाने-दाने से तरसाता है।
देख ये मंजर भगवान भी सोचता है,
न जाने मैं क्यों इस मां को बनाता हूं?
मत करो उस कोख का निरादर,
बन रहे हो तुम गुनहगार,
करो उस मां का सम्मान,
जिसने दिया है तुम्हें यह संसार।।
© Dolphin 🐬 (Prachi Goyal)
पर पूरा उसमें ब्रह्मांड समा जाता है।
देखते ही देखते बच्चा इसमें बड़ा हो जाता है,
और जैसे ही वह बाहर आता है,
देख वह संसार खूब इतराता है।
और फिर एक दिन उसे ही भूल जाता है,
जिसने उसे दुनिया से छुपाया होता है,
न जाने क्यों उसी पर गुराता है और फिर,
इसी कोख को दाने-दाने से तरसाता है।
देख ये मंजर भगवान भी सोचता है,
न जाने मैं क्यों इस मां को बनाता हूं?
मत करो उस कोख का निरादर,
बन रहे हो तुम गुनहगार,
करो उस मां का सम्मान,
जिसने दिया है तुम्हें यह संसार।।
© Dolphin 🐬 (Prachi Goyal)