...

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मैंने चाहा.......
रेत से भरी हुई है आंखें
सूखे पेड़ से लिपट कर क्यों रोना चाहा

दिल के दरिया है सूखा
कांधे पर तेरे सर रख क्यो सोना चाहा

सारी रात यूँ ही जागेंगे
दिन निकलते ही तेरी यादों के साथ भटकना चाहा

मुस्करा कर मिलते है सब से
ऊपर से हँसते रहना गहराई में रो लेना चाहा
© ऋत्विजा