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सब्र
ऐ गुल जरा सब्र तो रख,ज़मी भी होगी मुकाम भी होगा,
मंज़िले दूर कितनी ,ये फासला तय कर के ही पता होगा,
डूबते सूरज को वापस आना होगा,
तेरी मेहनत की चौखट पे उजालो को उतरना होगा।
गुल छोड़ तेरा तो बाग होगा,
मेहनत के आशियाने में तेरा सुनहरा नाम होगा,
आएगा वो दिन भी जब ख्वाईशो कि चादर को
हकीक़त में तब्दील होना होगा
ऐ गुल जरा सब्र तो रख,ज़मी भी होगी मुकाम भी होगा,
© Shashiniku
मंज़िले दूर कितनी ,ये फासला तय कर के ही पता होगा,
डूबते सूरज को वापस आना होगा,
तेरी मेहनत की चौखट पे उजालो को उतरना होगा।
गुल छोड़ तेरा तो बाग होगा,
मेहनत के आशियाने में तेरा सुनहरा नाम होगा,
आएगा वो दिन भी जब ख्वाईशो कि चादर को
हकीक़त में तब्दील होना होगा
ऐ गुल जरा सब्र तो रख,ज़मी भी होगी मुकाम भी होगा,
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