...

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यौवन-पुष्प....महका तो सही
हृदय कोमल, भाव मृदुल, नयनों से सरसा तो सही,
प्रेमोद्दीपन कर, धारण मन, जीवन पुष्प हर्षा तो सही।
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अधर सुवासित, प्रियतम तेरे, रस-सुधा बरसा तो सही,
कोमल अंग-प्रत्यंग कर यूँ आलिंगन,तू मुस्कुरा तो सही।
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कितनें सावन, निर्जन-मन-उपवन, दे अपनी साँसे महका तो सही।
साँवल-मृगनयनी, तू यूँ बलखाकर,केश-मेघ लहरा तो सही,
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कोमल अंगों की प्रत्याशा, तेरा दामन मेरी जीवन आशा,
तरसे अँखियाँ, बहके रतियाँ, बतियाँ कर बाहों में आ तो सही।
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यूँ जीवन स्वीकार करूँ, बाहुपाश विस्तार करूँ, तेरा अलंकार करूँ,
अपने मन की अभिलाषा, प्रियतम, तू कभी मुझे बतला तो सही।
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अधरों पर अधर यूँ हो संकुचन, नयनों के कुंचन से, दमके तन-मन,
अलक खोल यूँ लहराती, तू बलखाती, मुझको अंग लगा तो सही।
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समझ सका न तेरी रीत प्रीत की, समझा मुझको, अधर लगा तो सही।
पुष्प खिलें फिर आँगन अपने, कोमल-यौवन-पुष्प तू महका तो सही।
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© विवेक पाठक