...

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अपराध का मौन


मन मौन व्रत कर जो साजिश रचता,
निर्दोष भावों पर वार जो करता।
सन्नाटा ओढ़े, चालें यह चलता,
अपने ही स्वप्नों को छलता।

व्यंग्य के तीरों से घायल करे,
गंभीरता पर चोट निरंतर करे।
स्वयं...