...

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एक पहेली
जिंदगी के हौसलों में उड़ान लिए खडी़ थी।

अपने जन्म के वक्त सभी के चहेरो पर मुस्कान लिए खडी़ थी ।

वक्त ने सारी बंदिशे तोड़ दी।

परम्परा की बेड़िया भी पीछे छुट गयी ।

बार बार गिरने वाली अब संभलना सीख गई।

न अपनों के घर से ‌गई, न पाराएो‌‌‌ के घर को आई।

अपने हि जीवन में मचलना सिख गई।

ये बेटियां तो जिंदगी की उड़ान में उड़ना सिख गई।

ये बेटियां तो जिंदगी की उड़ान में उड़ना सिख गई।