...

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तेरे निशान
तेरे निशान क्या मिटाएं जिंदगी से धीरे धीरे खुद ही मिट गए हम,
अब ओर क्या शब्दों में अपनी दास्तां बयां करें वक्त ने बर्बादियों से ढाए है सितम,
दुनिया का हर दुःख तकलीफ नफा नुकसान देख लिया अब बाकी कौनसा रह गया है ग़म,
शायद भगवान ने मुझे ही आजमाने के लिए चूना मुझमें जब तक है दम,
हमने तो सबका भला ही सोचा है इसलिए मेरे दुःख कभी तो होंगे कम,
यह जिंदगी चंद लम्हों की खुशियां देकर जिंदा रखने के लिए पैदा करती है वहम।
© DEV-HINDUSTANI