...

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तुम
क्या तुम कभी मुख़ातिब हो पाओगे,
खुद से,
जो मेरे अंदर तुम हो,
तुम नहीं देख पाओगे वो हँसी तुम्हारी,
बुलबुलों सी खिलखिला के फूट जाती हैं।
तुम नहीं देख पाओगे वो चलना तुम्हारा, ख़जाने का पहरेदार, जोश में बल खाता हैं।
तुम नहीं देख पाओगे मोटरों पे घूमना तुम्हारा,
जो किसी नायक सा इतराता है।
नहीं देख पाओगें...