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नव वर्ष
नव वर्ष का प्रारंभ कुछ यू हो""
जीर्ण शीर्ण संकुचित मनोभाव ना मन मे हो,
उदगम नव वर्ष का जब हो।
प्रिय हो या अप्रिय मिलन हिर्दय से हो।

प्रफुलित मन मे पलास के पुष्प जेसी सुगंध हो।
हर्ष वर्ष भर चहरे पर एक समान हो।
जड़ चेतन मन मे नव विचार सरल सहज हो।
"""नव वर्ष का प्रारंभ कुछ यू हो ""

दारुण दुख: अप्रिय कोई घटना ना हो।
आयु दीर्घायु हो रोगग्रस्त ना आप हो।
उम्र परिय्ंत परिवार मे एका भाव हो।
मित्र गण जो रुठे हो, क्षमा याचना नी संकोच भाव से हो।
""नव वर्ष का प्रारंभ कुछ यू हो।

निर्धन के पास धन हो।
धनवान के मन मे निर्धन की सेवा भाव हो।
सोए ना कोई भूखा प्यासा एसा हिर्दय मे करुणा भाव हो।
"""नव वर्ष का प्रारंभ कुछ यू हो""

सरिता की तरह प्रवाहित आप का यसो गान हो ।
चहू ओर से उन्नति, खुले सभी बन्द द्वार हो।
मान प्रतिस्ठा दिन प्रती दिन प्रगति वान हो ।
""नव वर्ष का प्रारंभ कुछ यू हो""

स्त्री के मन मे वात्सल्य हो ।
पुरुष के मन मे ना कोई वासना हो ।
बच्चे करे बडो का मान सम्मान।
शिक्षक के प्रति छात्र में आदर सत्कार हो।

ना कोई बुरी कोई लत हो ना कोई संगत हो।
मदुसाला मे मदिरा का ना पान हो।
दुस्ठ जन पर भी आप की अच्छी संगत का प्रभाव हो।
""नव वर्ष का प्रारंभ कुछ यू हो।
""सोज़" की कलम से
© jitensoz