...

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तुम
कुछ घुटन भरे रिश्तो के साथ जीना सीख लिया था मैंने.....
लेकिन फिर तुम आए जैसे जान फूंकने मुझ में ।
कितनी आशंकाएं थी मन में
खुद को कितना समझाया
नहीं इस बार कोई जुड़ाव नहीं
कोई अपेक्षाये नहीं
क्योंकि इस बार नहीं संभल पाऊंगी गिरकर....
खुद को तकलीफ से बचाना चाहती थी मैं ,

सिमटे हुए टुकड़ों को फिर से बिसराना नहीं चाहती थी मैं

पर ना जाने क्यों...