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प्रेम या छलावा🔥🔥🔥
प्रेम या छलावा!!
🔥🔥🔥🔥🔥🔥
प्रेम के नाम पर
आँख मूंदे जब-जब ढूँढने निकलती है वो
अपने सपनो का राजकुमार
अक्सर ही छली जाती है नारी
जिस छलावे में पड़ वो भूल जाती है,
संस्कार, धर्म,मर्यादा
यहाँ तक कि अपनी पहचान भी
परिणीति में मिलता क्या है आखिर उसे-
एसिड,पेट्रोल या गोली??
तड़फता है बस जिस्म नहीं तब
वजूद भी तार-तार हो जाता है
जान बच भी जाती है कई बार पर
खत्म हो जाता है सब कुछ भीतर ही भीतर
बचती है बस एक जिंदा लाश जो
टूटे परिवार की बची-खुची उम्मीदें जोड़
फिर से लग जाती है
जीने...