...

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पिंजड़ा

उड़ना चाहूँ स्वच्छंद आकाश में, चाहकर भी उड़ नहीं पाती हूँ,
दकियानूसी के पिंजड़े में बंद, अपने पंखों को फड़फड़ाती हूँ।

सदियों से जो चलता आया, आज भी वही निभाया जाता है,
बहू बेटियों को बंदिशों के पिंजड़े में, बंधक बनाया जाता है।
आज भी बहू बेटियों के संग, समाजिक बंधनों की लाचारी है,
बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की, औपचारिकता ...