...

7 views

अपने लिए ख़ुशियाँ चुन रहा हूँ
अपने लिए ख़ुशियाँ चुन रहा हूँ
ख़्वाब मैं ख़ामखाँ बुन रहा हूँ

जाने किस फ़ितूर में रहता हूँ
लगे, मैं तेरी धमनियाँ सुन रहा हूँ

है पता नहीं क़ामिल होगा ख़्वाब
मैं प्यार हमारे दरमियाँ बुन रहा हूँ

कोई भी तो सुनता नहीं है मुझे
मैं भी खुद को कहाँ सुन रहा हूँ

सफ़र-ए-ज़ीस्त कठिन है तो है
बिखरी ख़ुशी राहों से चुन रहा हूँ

सर्द हो चुके हैं शब्द मेरे मेरी तरह
किसी ज़माने में मैं तरन्नुम रहा हूँ


© तिरस्कृत


#ग़ज़ल #प्रशान्त_की_ग़ज़ल #WritcoQuote #writco #writcoapp #pshakunquotes