क्या क्या तजुर्बा फ़िज़ूल करता हूं
हर बार मैं बस यही भूल करता हूँ
इल्तिज़ा इश्क़ की क़ुबूल करता हूँ.........!
सहम जाते हैं वो ख़्वाब सारे
मुस्तकबिल जिनका यूँ धूल करता हूँ......!
ख़ामोश रहता हूँ अब बुत की तरह
क्या क्या तजुर्बा फ़िज़ूल करता हूँ..........!
चुभते बहुत हैं वो बहारों के पतझड़
जब जब मैं ख़ुद को फूल करता हूँ.........!
वो जो आए थे मुझको ज़हर करने
लो मंसूबे सबके मक़बूल करता हूँ.........!
के गुनाह मेरे भी तू रखना गिनकर
हवाले तेरे ख़ुद को मैं ,रसूल करता हूँ.....!
© samrat rajput
#Gazal #yade #bebaja
इल्तिज़ा इश्क़ की क़ुबूल करता हूँ.........!
सहम जाते हैं वो ख़्वाब सारे
मुस्तकबिल जिनका यूँ धूल करता हूँ......!
ख़ामोश रहता हूँ अब बुत की तरह
क्या क्या तजुर्बा फ़िज़ूल करता हूँ..........!
चुभते बहुत हैं वो बहारों के पतझड़
जब जब मैं ख़ुद को फूल करता हूँ.........!
वो जो आए थे मुझको ज़हर करने
लो मंसूबे सबके मक़बूल करता हूँ.........!
के गुनाह मेरे भी तू रखना गिनकर
हवाले तेरे ख़ुद को मैं ,रसूल करता हूँ.....!
© samrat rajput
#Gazal #yade #bebaja