...

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फिर याद आए
फिर याद आए वो मौसम पुराने
वो बचपन के दिन कैसे नटखट सुहाने
वो बाबा का हुक्का वो अम्मा का चिमटा
वो चाचा का गुस्सा वो चाची का प्यार
वो बुआ की मुठ्ठी में छोटी सी टॉफी
वो रौनक वो हुडदंग वो टोली वो होली
वो गाँवों के मेले, वो मेलों में झूले
वो नदियाँ वो पनघट भुलाए न भूले
अब दुनिया जैसे हो खुद में ही सिमटी
आधुनिकता की ज्यौं बेडियाँ सी लिपटी
अब ना वो पनघट की रौनक न मेला
सब ओर भीड पर हर कोई अकेला
फिर याद आए वो मौसम पुराने.....


© Garg sahiba