वो ईश्वर भाव खाता है
वो ईश्वर भाव खाता है, उसे बस भाव भाता है,
जो भक्ति भाव से हो तो, वो हर आभाव खाता है।
त्यागकर भोग महलों के, साग बड़े चाव खाता है
हृदय जिसके बसे उसके, मन का बिखराव खाता है।
कठिन अवरोधों से तेरे, अवगुणों को मिटाता है,
रहित अपभ्रंश करने को, तेरा तन-मन तपाता है।
वो तेरे चित्त और चरित में, ऐसा प्रभाव लाता है
वो तप से और चिंतन से, तुझमें बदलाव लाता है।
वह हर क्षण साथ है तेरे, वही तेरा तात-भ्राता है,
परिश्रम वो करा तुझमें, सरल स्वभाव लाता है।
उसका विश्वास जीवन में, आस की छाँव लाता है
वो भावग्राही है "भूषण", वो ईश्वर भाव खाता है।।
जो भक्ति भाव से हो तो, वो हर आभाव खाता है।
त्यागकर भोग महलों के, साग बड़े चाव खाता है
हृदय जिसके बसे उसके, मन का बिखराव खाता है।
कठिन अवरोधों से तेरे, अवगुणों को मिटाता है,
रहित अपभ्रंश करने को, तेरा तन-मन तपाता है।
वो तेरे चित्त और चरित में, ऐसा प्रभाव लाता है
वो तप से और चिंतन से, तुझमें बदलाव लाता है।
वह हर क्षण साथ है तेरे, वही तेरा तात-भ्राता है,
परिश्रम वो करा तुझमें, सरल स्वभाव लाता है।
उसका विश्वास जीवन में, आस की छाँव लाता है
वो भावग्राही है "भूषण", वो ईश्वर भाव खाता है।।
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