...

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बेबुनियादी ख़्वाब
बईमान लब्ज़ सारे
बेबुनियादी है ख़्वाब अपने
ताश के पत्तों की है ये ईमारत
खुली नज़रों से है जो बुना,
इन्हीं पलों में तो बस सिमटी है जिंदगी
कुछ अधूरे ख़्वाब मेरे, कुछ ख़्वाब तेरे
यहाँ आज की ख़बर है किसे
हमने कल के सपनों को संजो रखा है,
आज की इन इतर ख़्वाबों में
लबों की मुश्कुराहतें है बसीं
फ़क़त डर में जी रहे है यहां सभी
यूँही तो ग़म में डूबी धरा सारी.

© LivingSpirit