एक टुकड़ा धूप
युग बीत गया
एक टुकड़ा धूप की तलाश में
उलझी रही सदा, मैं
क्यूँ और काश में
छल ही मिला, मुझे
अपनों पर किए विश्वास में
करुणा स्वाभिमान स्नेह
भरा, मेरे श्वास श्वास में
हाँ,मैं भी प्रस्फुटित होना चाहूं
ख़ुद की धूप के प्रकाश में
वसुधा गोयल
© वसुधा गोयल