...

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She said....
She said....
पर कटा परिंदा हूं मैं पेड़ो से नहीं मिलता l
तुम आना तो रूह ले आना मैं जिस्मों से नहीं मिलता ll

Reply to her...
मैं इक दरख़्त ही सही पर तिरा आशियाना था
आंखों में छिपे तिरे सपनों का परवाना था
ये तिरे जिस्मों के पंख हैं, जो कटे हैं
कटे परों से कब सपने उड़ान भरते हैं
तुम आओ तो सही ,पर-कटे परिंदों को भी मिरे शाखें उड़ान देते हैं
और कहती हो सिर्फ रूह लाने को
रूहों को कब मैंने जिस्मों से अलग जाना, तो
ये रूह मैं लाऊं कैसे , बिन जिस्मों के आऊं कैसे
रूहों का बिन जिस्मों के वजूद कहां मिलता है
यूं भी बिन गुलसितां के अब फूल कहां खिलता है

© ya waris