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आवारगी
मैं खुद से खफा हूं तुमसे क्या कहूं
मैं खुद सोचता हूं आज़ाद मैं कैसे रहूं
मैं खुद को अपना आशिक समझ बैठा हूं
मैं अपनी नादानियों से प्यार कर बैठा हूं
मैं खुद में झांक कभी देखता नहीं हूं
मैं यूं किसी काबिल कभी रहा नहीं हूं
मैं अपने को अच्छा दिखाने में लगा हूं
मैं प्रकृति प्रेम में खुद बदलने में लगा हूं
मैं धारा के विपरित इसलिए हमेशा चला हूं
मैं भौतिकता के विपरीत प्रकृति में पला हूं
© mast.fakir chal akela
मैं खुद सोचता हूं आज़ाद मैं कैसे रहूं
मैं खुद को अपना आशिक समझ बैठा हूं
मैं अपनी नादानियों से प्यार कर बैठा हूं
मैं खुद में झांक कभी देखता नहीं हूं
मैं यूं किसी काबिल कभी रहा नहीं हूं
मैं अपने को अच्छा दिखाने में लगा हूं
मैं प्रकृति प्रेम में खुद बदलने में लगा हूं
मैं धारा के विपरित इसलिए हमेशा चला हूं
मैं भौतिकता के विपरीत प्रकृति में पला हूं
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