...

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आइए
क्या जिंदगी में कोई सिरहाना नहीं है
क्या किस्मत पे जोर आजमाना सही है
क्या खुद को तूने संभाला सही है
क्या ठहरने को तुझको आशियाना नहीं है

बगीचे को कुदरत का सहारा चाइए
माली को बगीचे को सजाना चाहिए
मालिक को पुष्पों का नजारा चाहिए
हमे फूल अपना, न पराया चाहिए

हल्ला रात का है, दिखता है, सुनाई नही देता
अंधेरे जज़्बात की गहराई नही देखता?
भूत मुक्का लात का है सिधाई नहीं देखता
बिना गुलामी कोई रिहाई नही देखता

तबियत हरी है, किताबें पढ़ी है
सीढ़िया चढ़ी हैं, हमारी घड़ी है
हम क्षितिज से क्षितिज की कड़ी हैं
हम एक नही दो, हम दो एक ही हैं




© Mahamegh