...

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दूर मंज़िल दिख रही है...


धुंधली सी एक राह पर,
मैं चल पड़ा हूँ बेखबर,
दूर मंज़िल कहीं दिख रही है,
आँखों में स्वप्न सज रहे हैं।

कदम-कदम पर अड़चनें हैं,
हर मोड़ पर नई चुनौतियाँ हैं,
फिर भी दिल में एक उम्मीद है,
दूर मंज़िल कहीं दिख रही है।

चलते-चलते थकान भी है,
राहें मुश्किल और लंबी भी हैं,
मगर हौंसला मेरा संग है,
क्योंकि मंज़िल कहीं दिख रही है।

रात के अंधेरे में भी,
एक सितारा...