अक्सर,,, यूँ ही
बैठ अकेले तन्हाई में
अक्सर सोचा करती हूँ
जीवन के गुज़रे किस्सों में
खुद को ढूँढा करती हूँ
यूँ जो हूँ मैं आज बेगानी
ऐसी तो न पहले थी
कुछ उलझन थी माना...
अक्सर सोचा करती हूँ
जीवन के गुज़रे किस्सों में
खुद को ढूँढा करती हूँ
यूँ जो हूँ मैं आज बेगानी
ऐसी तो न पहले थी
कुछ उलझन थी माना...