अपनों से दूर
कुछ ठाना सोचा फिर मैंने,
अपने जीवन की शुरुआत करी,
कुछ पाने कमाने की दिल में,
फिर मेरे एक उम्मीद बढ़ी,
मैं निकला फिर घर से अपने,
जीवन को अपने बदलने को,
हो गई देर अब चलते-चलते,
सूरज भी आ गया ढलने को,
आ गया दूर घर से मैं अपने,
हो गई रात अब सोने को,
ख्वाबों में भी उठ कर बैठ गया,
सपने मैं लगा अपने पिरोने को,
हो गई सुबह अब जो थी,
सूरज की रोशनी ने धरती छूली,
था पड़ा तेज प्रकाश मुख पर,
तब मेरी भी थी आंख खुली,
नव प्रातः का उस दिन मुझको,
एक दुर्लभ सा एहसास मिला,
जब बढ़ने को सोचा आगे,
तब हर सपना दिल के पास मिला,
आ गया दूर घर...
अपने जीवन की शुरुआत करी,
कुछ पाने कमाने की दिल में,
फिर मेरे एक उम्मीद बढ़ी,
मैं निकला फिर घर से अपने,
जीवन को अपने बदलने को,
हो गई देर अब चलते-चलते,
सूरज भी आ गया ढलने को,
आ गया दूर घर से मैं अपने,
हो गई रात अब सोने को,
ख्वाबों में भी उठ कर बैठ गया,
सपने मैं लगा अपने पिरोने को,
हो गई सुबह अब जो थी,
सूरज की रोशनी ने धरती छूली,
था पड़ा तेज प्रकाश मुख पर,
तब मेरी भी थी आंख खुली,
नव प्रातः का उस दिन मुझको,
एक दुर्लभ सा एहसास मिला,
जब बढ़ने को सोचा आगे,
तब हर सपना दिल के पास मिला,
आ गया दूर घर...