ग़ज़ल
याद में और हिज्र के ग़म में
दिल तड़पता है सर्द मौसम में
ज़ुल्फ़-ए-ख़म में तेरी मैं खो रहा हूँ
ले चलो मुझको दाँग-ए-आलम में
चाह बढ़ती ही जा रही है मेरी
काम चलता नहीं है अब कम में
सौंप दी दुनिया हाथों...
दिल तड़पता है सर्द मौसम में
ज़ुल्फ़-ए-ख़म में तेरी मैं खो रहा हूँ
ले चलो मुझको दाँग-ए-आलम में
चाह बढ़ती ही जा रही है मेरी
काम चलता नहीं है अब कम में
सौंप दी दुनिया हाथों...