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इबादत.....✍
लिखता हूँ जो भी अल्फ़ाज़,
कागज़ पे तेरे नाम से,
हर अल्फ़ाज़ को, इस बन्दे की,
बन्दगी तू समझना,
ये ज़माना मेरे बारे में,
सोचे कहे कुछ भी,
पर मेरे ऐ खुदा !
तू ना मुझे कभी गलत समझना,
करना नहीं आता,
मुझे सजदा तेरी दरगाह में,
इसीलिए तेरे दर पे,
मैं कम ही आता हूँ,
पर जब भी मैं झूंकू,
किसी को उठाने के लिए,
उसी सूरत - ए - हाल को,
मेरी इबादत तू समझना.....
© 𝘕𝘪𝘴𝘩𝘢𝘯𝘵 𝘎𝘢𝘳𝘨.....✍
कागज़ पे तेरे नाम से,
हर अल्फ़ाज़ को, इस बन्दे की,
बन्दगी तू समझना,
ये ज़माना मेरे बारे में,
सोचे कहे कुछ भी,
पर मेरे ऐ खुदा !
तू ना मुझे कभी गलत समझना,
करना नहीं आता,
मुझे सजदा तेरी दरगाह में,
इसीलिए तेरे दर पे,
मैं कम ही आता हूँ,
पर जब भी मैं झूंकू,
किसी को उठाने के लिए,
उसी सूरत - ए - हाल को,
मेरी इबादत तू समझना.....
© 𝘕𝘪𝘴𝘩𝘢𝘯𝘵 𝘎𝘢𝘳𝘨.....✍
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