गांव सूना पड़ा है
बरसो बाद गांव पहुंचा तो देखा
गांव सूना पड़ा है
सूने पड़े हैं गांव के गलियारे
जहां हम कभी उधम मचाया करते थे
चांदनी रात में चहल कदमी करते हुए याद आया
इसी उजाले में दादाजी से कहानियां सुना करते थे
सूने दरवाजों को देखकर दिल भर आया
जहां हम जरा सी बात पर खूब रोया करते थे
लालच के नाम पर कटते पेड़, आह!
इन्ही की छांव में भरी धूप में भी खूब सोते थे
कभी दादाजी कभी चाचा कभी बड़े भैया की डांट ,
बचपन में हम शरारतें भी तो खूब किया करते थे
अब किसी का डर नहीं, कोई कही नहीं दिखता
क्योंकि, गांव सूना पड़ा है।।
© Om Pandey
गांव सूना पड़ा है
सूने पड़े हैं गांव के गलियारे
जहां हम कभी उधम मचाया करते थे
चांदनी रात में चहल कदमी करते हुए याद आया
इसी उजाले में दादाजी से कहानियां सुना करते थे
सूने दरवाजों को देखकर दिल भर आया
जहां हम जरा सी बात पर खूब रोया करते थे
लालच के नाम पर कटते पेड़, आह!
इन्ही की छांव में भरी धूप में भी खूब सोते थे
कभी दादाजी कभी चाचा कभी बड़े भैया की डांट ,
बचपन में हम शरारतें भी तो खूब किया करते थे
अब किसी का डर नहीं, कोई कही नहीं दिखता
क्योंकि, गांव सूना पड़ा है।।
© Om Pandey