...

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मुकद्दर के सताये कितना रोये?
ख़्वाब अधूरे रे गए
दर्द दिल का पूरा हुआ

नींद अधूरी रही
फिर भी कमबख्त !!!
मुकद्दर का मारा गया

काबिलियत के सताए तो कम रोए
अपना आसमान जानते थे !!
जो मुकद्दर सताये
वो आंसू कितना बहाए
कि वो आसमान देखा
पर छू को ना पाया |
© ---AFNAN SIDDIQUE .